Tuesday, July 10, 2007

IMPERIAL GURJARS


"Imperial Gurjars"...

ऋषि भूमि भारत पर कई बार यहाँ की संस्कृति को समाप्त करने के उदेश्य से बाहरी आक्रमण हुए। यहाँ की संस्कृति व सभ्यता की रक्षा हेतु समय-समय पर अनेक वीरों ने अपने प्राणों की आहुती दी, भारतीय साहित्य में इन वीरों का उल्लेख मिलता है। परन्तु कुछ ऐसे वीर या वीरों के समूहों को नजरन्दाज भी कर दिया गया है, जिन्होने अपना सर्वस्य न्यौछावर कर इस ऋषि भूमि की रक्षा की। रक्षा का भार वहन करने वालो को वैदिक वर्ण व्यवस्था के अनुसार क्षत्रीय कहा गया। कालांतर में विभिन्न कारणो से क्षत्रीय समूह अपने दायित्व से विचलित भी हुए परन्तु कुछ क्षत्रीय समूहों ने अपने इस गुरुत्तर दायित्व से मुँह नही मोड़ा और उन्होने सदैव अपने प्राणों की बाजी लगा कर देश, धर्म व संस्कृति की रक्षा की। ऐसे क्षत्रीय समूह को इतिहासकारों ने गुरुत्तर व गुर्जर के नाम से उल्लेखित किया है।

भारतीय इतिहास पर अनेक पुस्तकें भारतीय अथवा विदेशी इतिहासकारों व लेखकों द्वारा लिखी गई, परन्तु अधिकांश ने गुर्जर जाति के कार्यो, बलिदानो व क्षमताओं पर कुछ कहने का कष्ट नही किया। इतिहास इस बात का साक्षी है की यदि 250 वर्षो तक अरब आक्रांताओं को गुर्जर वीर करारी चोट न देते तो भारतीय संस्कृति पूर्णतः नष्ट हो जाती। इसी प्रकार तुर्क व अफगानो तथा बाद में अंग्रेजी शासन के विरुद्ध गुर्जर वीरों ने विद्रोह न किया होता तो भारतीय संस्कृति का स्वरूप कुछ ओर ही होता, भारत की आजादी के उपरान्त अगर भारत की 556 रियासतों को गुर्जर वीर स्व सरदार वल्लभ भाई पटेल एक झण्ड़े तले न लाते तो वर्तमान भारत का संगठित स्वरूप दिखाई न देता।

इन सब बातों के होते हुए भी इतिहास की पुस्तकों से इस वीर देशभक्त जाति का नाम समाप्त करने के पीछे इतिहासकारों का कोई भी उदेश्य रहा हो, परन्तु दुसरी जो विशेष हानि हुई कि, गुर्जर जाति में हीन भावना का आगमन।

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